Friday, August 15, 2008

Summary of Patriotism

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है
देखना है ज़ोर िकतना बाज़ू-ए-क़ाितल में है

(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं िजसे वो चुप तेरी महिफल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-िमल्लत, मैं तेरे ऊपर िनसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महिफल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे िदल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आिशक़ोँ का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है

है िलए हिथयार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तय्यार हैं सीना िलये अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्िकल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है

हाथ,जिन में हो जूनून कटते ते नहीं तलवार से ,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे िदल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है

हम तो घर से ही थे िनकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर िलये लो बढ चले हैं ये कदम.
िजन्दगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महिफिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ाितल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी िकसी के िदल में है?
िदल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंिजल में है,

िजस्म भी क्या िजस्म है िजसमें न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लढ़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे िदल में है
देखना है ज़ोर िकतना बाज़ू-ए-क़ाितल में है

-- राम प्रसाद बिस्मिल


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